Stories Of Premchand

9: प्रेमचंद की कहानी "बड़े घर की बेटी" Premchand Story "Bade Ghar Ki Beti"

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Sinopsis

एक दिन दोपहर के समय लालबिहारी सिंह दो चिड़िया लिये हुए आया और भावज से बोला-जल्दी से पका दो, मुझे भूख लगी है। आनंदी भोजन बनाकर उसकी राह देख रही थी। अब वह नया व्यंजन बनाने बैठी। हाँड़ी में देखा, तो घी पाव-भर से अधिक न था। बड़े घर की बेटी, किफायत क्या जाने। उसने सब घी मांस में डाल दिया। लालबिहारी खाने बैठा, तो दाल में घी न था, बोला-दाल में घी क्यों नहीं छोड़ा ? आनंदी ने कहा-घी सब मांस में पड़ गया। लालबिहारी ज़ोर से बोला-अभी परसों घी आया है। इतना जल्द उठ गया ? आनंदी ने उत्तर दिया-आज तो कुल पाव-भर रहा होगा। वह सब मैंने मांस में डाल दिया। जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है-उसी तरह क्षुधा से बावला मनुष्य जरा-जरा सी बात पर तिनक जाता है। लालबिहारी को भावज की यह ढिठाई बहुत बुरी मालूम हुई, तिनक कर बोला-मैके में तो चाहे घी की नदी बहती हो ! स्त्री गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है; पर मैके की निंदा उससे नहीं सही जाती। आनंदी मुँह फेर कर बोली-हाथी मरा भी, तो नौ लाख का। वहाँ इतना घी नित्य नाई-कहार खा जाते हैं। लालबिहारी जल गया, थाली उठाकर पलट दी, और बोला-जी चाहता है, जीभ पकड़ कर खींच लूँ। आनंदी को भी क्रोध आ गय